आज पहली पोस्ट है यह...मै अक्सर सोचती हूँ क्या इश्वर है...हर बार पलट कर मेरी ही आवाज मेरे कानों में पलट कर आती है क्या इश्वर है???
एक गीत जो बचपन में मै बहुत गाया करती थी याद आता है...
"उसको नही देखा हमने कभी...ओ माँ
ओ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी"
और एक बाल मन माँ को ही भगवान मान लेता है...और इसके बाद तो यह सिलसिला ही हो गया कि मै अपनी माँ की शक्ल में ही खो जाने लगी, आज भी सच यह है कि इश्वर की हर मूरत में चेहरा मुझे मेरी माँ का नजर आता है...
माँ ने बचपन में एक छोटा सा भजन सुनाया था क्या आप पढ़ना चाहेंगे? आज भी वह भजन मेरे मन में गूँजता रहता है...
शरणागत को हैं बचाती सदा
फ़िर कैसे हमें न बचाओगी माँ
हम छोड़ेगें चरण तुम्हारे नहीं
जब तक न दया तुम धारोगी माँ
बन जाती है बिगड़ी बातें सभी
जरा सी दया कर देती हो माँ
भयभीत कभी होते ही नहीं
जिनको निज गोद में लेती हो माँ
यह भजन कहते-कहते हमेशा याद आ जाती है माँ...और मै इश्वर से प्रार्थना करने लगती हूँ कि मुझे माफ़ करना... तू मेरी माँ से बढ़ कर नही...
सुनीता शानू
Friday, March 28, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)